पंख वाले हाथियों की गाथा, पोरायुग के रहस्य

यह एक कल्पनातीत गाथा है, पोरायुग की

बहुत समय पहले, पोरायुग नामक एक युग में, हाथियों की एक विशेष प्रजाति रहती थी जिसे ‘पंखदार हाथी’ के नाम से जाना जाता था। ये हाथी अन्य हाथियों से अलग थे, क्यूंकि उनकी बड़ी, मजबूत पीठों पर विशाल पंख उगे होते थे। उन पंखों का रंग सुनहरा और चमकीला होता था, जो सूरज की रौशनी में चमचमाते थे।

ये पंख तो बड़े थे, पर इतने बड़े नहीं कि विशाल हाथियों को आसमान में उड़ा सकें। फिर भी, पंखों की अपनी ही एक खासियत थी। जब गर्मी की चिलचिलाती धूप से प्राचीन बागों और घने जंगलों का तापमान बढ़ जाता, तो ये हाथी अपने पंखों को फैलाकर अपने शरीर को प्राकृतिक पंखे की तरह ठंडा करते थे।

कभी-कभी, जब अचानक बारिश आ जाती और झींगुरों और कीटों की भीड़ उत्पन्न हो जाती, तो पंखदार हाथी अपने पंखों को हिलाकर उन कीटों को भगा देते, और अपने शिशु हाथियों को पंखों की छाया में छुपाकर उन्हें सुरक्षित रखते।

ये हाथी अपने विलक्षण पंखों का प्रयोग केवल अपने जीवन को आरामदायक बनाने हेतु ही नहीं करते थे, बल्कि उनका प्रयोग शक्तिशाली संकेत के रूप में भी करते थे। जब कोई खतरा नजदीक होता, तो वे अपने पंखों को घनघोर रूप से फड़फड़ाकर या हिलाकर अन्य हाथियों को चेतावनी देते थे।

पोरायुग के रहस्यमय हाथी अनोखे और सराहनीय प्राणी थे। उनकी महानता की कहानियाँ और मिथक सदियों तक प्रचलित रहे, भले ही वास्तविकता में उनका अस्तित्व कभी न रहा हो। वे पोरायुग के जंगलों की सुंदरता और विविधता का प्रतीक बन गए।

अब ये हाथी नहीं रहे और इनका अंत हो गया।